बुद्धि वापसी के लिए आवेदन / व्यंग्य/ अख्तर अली

छत्तीसगढ़ के अख्तर अली हिन्दी के महत्वपूर्ण व्यंग्यकार हैं। इनके व्यंग्य में समकालीन समय और समाज की विद्रूपताएँ और विपर्यय बिलकुल सटीक रूप में प्रकट होते हैं। यहाँ प्रस्तुत है उनके व्यंग्य की एक बानगी। 


आदरणीय भगवान् जी,

 विषय – बुद्धि - वापसी बाबत आवेदन 

महोदय ,
सनम्र निवेदन है कि आपने मेरे को जो बुद्धि दी है उससे जीवन में बहुत असुविधा हो रही है | मेरे आस - पास के वो सभी लोग जिनके पास बुद्धि नहीं है वे बिना किसी तनाव के बिंदास जी रहे हैं जैसे बुद्धिमान शिक्षक वहीं का वहीं है और बुद्धिहीन छात्र कहां से कहां पहुँच गए | इस तरह के बहुत से प्रकरण रोजाना सामने आ रहे है | गधे खीर और बुद्धिमान गालियाँ खा रहे हैं | बुद्धिमान का समाज में रहना दूभर हो गया है | प्रभु बुद्धि का बोझ अब और न उठेगा |
प्रभु छोटा मुंह बड़ी बात कर रहा  हूं पर आप अपने मानव उत्पादन विभाग में ज़रा अतिरिक्त ध्यान दीजिये , वहाँ बहुत गड़बड़ियाँ नज़र आ रही हैं | लगता है वहाँ आरक्षण के तहत नियुक्तियां हुई हैं , तभी काम तो तबियत से हो रहा है पर परिणाम विपरीत निकल रहे हैं | उत्पादन में तकनीकी समस्या है , अकुशल कारीगरों के कारण आपका उच्च क्वालिटी का राॅ मटेरियल बर्बाद हो रहा है और पृथ्वी पर आपका नाम अलग ख़राब हो रहा है | आपके मानव - निर्माण विभाग में घोर लापरवाही हो रही है , सुपरविज़न कमज़ोर है और मैनेजमेंट इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है |
भगवान जी आप से आग्रह है एक बार स्टोर रूम का इंस्पेक्शन कीजिये , स्टाक और इशू रजिस्टर चैक करिये , रजिस्टर की एक एक इंट्री बारीकी से देखिये ज़रूर आप पाएंगे कि वहाँ जितने आदमियों का निर्माण हुआ है उनके लिये उतने हाथ , पैर , आँख , नाक , कान तो इशू हुए हैं लेकिन उतने दिमाग़ इशू नहीं हुए हैं| दिमाग़ वहीं पड़े हैं और आदमी पृथ्वी के लिये डिस्पैच कर दिया गया |
यहाँ इतने ज़्यादा बुद्धिहीन इंसान पहुँच गये हैं कि देश के कोने - कोने में मूर्ख बस गये हैं , ऐसा कोई विभाग नहीं , ऐसा कोई पद नहीं , ऐसी कोई संस्था नहीं जहां मूर्खों का कब्जा न हो | हम मुट्ठी भर बुद्धिमान अपने बुद्धिमान होने की पीड़ा से कराह रहे हैं  | 
आपके विभागीय कर्मचारियों की गलती की सज़ा यहाँ हम निर्दोष लोग भुगत रहे हैं , इसका ज़िम्मेदार कौन है ? यह तो वही बात हुई कि करे कोई और भरे कोई | दो - चार मस्तक में बुद्धि रखना भूल जाते तो चलो माफ़ भी किया जा सकता था , लेकिन यहाँ तो इतना बड़ा गड़बड़ घोटाला हुआ है कि बस पांच - दस खोपड़ी में ही बुद्धि रखी गई है और करोड़ों - करोड़ों लोग पृथ्वी पर बिना बुद्धि के उतार दिये गये हैं | मेरे देश में तो थोड़े बहुत दिमाग़ वाले है भी पर अड़ोस -पड़ोस के मुल्क में तो पूरी की पूरी आबादी मूर्खों से भरी है | मूर्ख पड़ोसी जी का जंजाल होता है । खैर, पड़ोसी का महत्व आप क्या जानो , समूचा ब्रह्मांड आपका है इसलिये आप पड़ोसी के सुख से वंचित हो प्रभु !
भगवान पूरी पृथ्वी पर बुद्धिहीनो का वर्चस्व स्थापित हो गया है , बुद्धिमान उनकी मूर्खताओ को झेलने के लिये अभिशप्त है | दो और दो चार बोलने वालों का मज़ाक उड़ाया जाता है , सड़क पर देख कर लोग हँसते है और उंगली दिखा - दिखा कर कहते हैं– वो देखो दो और दो चार बोलने वाला जा रहा है, फिर एक ज़ोरदार ठहाका सुनाई देता है | 
भगवान मेरे पिछले जनम के कौन - से गुनाह थे जो इस जनम में बुद्धि देकर मूर्खों के बीच भेज दिये ? मेरे से इतने ज़्यादा नाराज़ थे तो नर्क में डाल देते , कम से कम वहाँ समान विचारधारा वाले लोगो के बीच तो रहता , या  मेरे किये गुनाहों के लिये नरक भी कम था , या फिर मैं नर्क में ही हूँ और नर्क को नर्क नहीं मान रहा हूँ , या फिर पृथ्वी भी कहीं नर्क का ही भूभाग तो नहीं ? क्या ज़मीन जहन्नम की ही एक ब्रांच है ? या फिर नर्क में जगह कम पड़ने के कारण ज़मीन को नर्क के अधिकारियों ने 99 वर्षो के लिये लीज़ पर ले लिया है , या नर्क की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खूंखार अपराधियों को बुद्धि देकर ज़मीन पर स्थानांतरित कर दिया गया है ताकि नर्क भी सुरक्षित रहे और बुद्धि के कारण लोग अपने हिस्से का दंड भी भुगतते रहे | 
प्रभु बुद्धि प्रगति की राह में बाधा बन गई है , जो काम करने से बुद्धि रोक देती है वैसे समस्त काम कर के मूर्खों ने जागीरें खड़ी कर ली हैं , मूर्ख बड़े - बड़े निवेशक बन गये हैं और बुद्धिमान उनके एकाउन्टेंट बन कर रह गये हैं | हम न उनके सामने आँख उठा सकते हैं न ज़बान खोल सकते हैं| गंवार कोट, पेंट - टाई लगाये महंगी गाड़ियों में घूम रहे हैं और हम सस्ता कुरता -? पाजाम पहने काॅटन का झोला लटकाए चाय के ठेलों पर वक्त गुज़ार रहे हैं | न तो कोई हमारा दर्द समझने वाला है न कोई हमारी पीड़ा सुनने वाला है | हमारा शरीर सूख गया है , गाल पिचक गये है , आँखे हमारी धंस गई हैं | जब मन ज़्यादा अशांत हो जाता है तब एक कविता लिख लेते हैं जिसे कोई पढ़ता नहीं और लिख लेते हैं एक व्यंग्य जिसे कोई छापता नहीं |
प्रभु उक्त बातों को ध्यान में रखते हुए हम आपसे विनती करते हैं कि हम से हमारी बुद्धि वापस ले लो ताकि हमें भी मूर्खों को मिलने वाली समस्त सुविधाएँ प्राप्त हो सकें | हमें आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि आप हमारे निवेदन को स्वीकार कर हमें अनुगृहित करेंगे ।

धन्यवाद 

पृथ्वी के समस्त बुद्धिमान् 
□□□

लेखक - अख्तर अली 
आमानाका, रायपुर ( छत्तीसगढ़ ) मो.न. 9826126781

1 comment:

  1. अति सुन्दर। मजा आ गया। बहुत अच्छा लगा ।

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