जिस मारग में चरण धरैं हम, उस पर खावैं धक्का।
रोज घिसैं हम, मध्यवर्ग के हाथ घिसैं ज्यों सिक्का,
भार घटै, पर घटै न अपना मोल कभी, यह पक्का।
खुद ही खुद में फूल - फूलकर ह्वै रहिं हम तो फुक्का,
फुक्का फूटै तो हम मारैं खूब हवा में मुक्का।
सत नहिं जानैं, सत को लेकर मारैं नित हम तुक्का,
तुक्का पर ही निर्भर अपना दाना - पानी, हुक्का।
नाक डुबोकर मध्यवर्ग जब मारै भोग - चभक्का,
दूरदास क्यों एक अकेला, होवै हक्का- बक्का।